लेखनी कविता -हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों -रामधारी सिंह दिनकर

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों -रामधारी सिंह दिनकर कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।  श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद  कहां से आता है।  है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे? ...

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